चुनाव के पहले ही चरण में प्रशासन नाकाम रहा ,नाक्सालियो ने १९ लोगो की जन ले ली। छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और बिहार जिन्हें नक्सलियों का गढ़ माना जाता है वहा सुरक्षा व्यस्था में इतनी चुक कैसे हुई ? अभी चार चरण बाकी है अब देखना यह होगा की अगले चुनावों में सरकार जनता को कितनी सुरक्षा दे पाती है? किंतु सवाल यह उठता है कि जब सरकार चुनाव की सुरक्षा के लिए आईपीएल मैचो को टाल दी तो फ़िर सुरक्षा में इतनी कमी क्यो की गई । कांग्रेस ने आइपीएल को सुरक्षा प्रदान करने से माना कर दिया मजबूरन प्रयोजको को देश से बाहर जाना पड़ा। अब कांग्रेस इस घटना की जिम्मेदारी लेने से बच रही है और कह रही है की चुनाव आयोग को पूरी सुरक्षा दी गई है । चुनाव आयोग ने कहा है कि ७६ हजार मतदान केन्द्र ऐसे संसदीय क्षेत्रो में स्थित थे जहा नक्सलियों का प्रभाव है । इनमे से ७१ केन्द्रों पर गडबडी हुई । नक्सलियों द्वारा मतदान बूथ जला दिए गए ,मतदान मशीन लुटी गई और पुलिस के साथ-साथ आम लोगो कि भी जान ली गई । सरकार कि दुलमुल नीति का ही यह परिणाम है । आए दिन जेलों पर हमला कर अपने साथियों को छुडाते और हमले करते नक्सली तेजी से विकास कर रहे है । यह एक बेहद गंभीर समस्या है और निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है की इस समस्या को रोकने में सरकार विफल रही है । भारत में नक्सलवाद आतंकवाद से भी बड़ी समस्या है । किंतु चाहे एनडीए हो या यूपीए कोई भी इस समस्या के के लिए चिंतित नही नजर आ रहा । न तो किसी के पास कोई विजन है इस समस्या के लिए । छोटे बच्चो से बारूदी सुरंगे बिछवाई जा रही है ,गरीबी ,अशिक्षा और बेरोजगारी के कारन युवाओ को कुछ पैसे दे कर बन्दूक थमा दी जा रही है और उनका ब्रेनवाश कर दिया जा रह है की यह सरकार बेकार है और विकाश तभी होगा जब उनकी सत्ता होगी । जिन्हें यह पता नही की मार्क्स और लेनिन कौन थे वे क्रांति के नम पर बेगुनाहों की हत्या कर रहे है और इंसाफ के नम पर गुंडागर्दी कर रहे है तथा बीरन जंगलो में अपनी ही एक सामानांतर सरकार चला रहे है। इन दूर दर्ज के क्षत्रों में न बिजली है न पानी और न ही सड़क और यदि सरकार कोई भी विकाश का कम करना भी चाहती है तो ये नक्सली कुछ नही करने देते । आख़िर सरकार कब तक दुलमुल निति अपनाती रहेगी और आने वाले चुनाव क्या सुरक्षित हो पायेगे ?इन सबके बीच अच्छी बात ये है की जनता ने हिम्मत दिखाई और ६० फीसदी मतदान हुआ जो जनतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत है ।
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