Saturday, November 14, 2009
देवो की भूमि बनी फ्राडों की भूमि
Monday, October 26, 2009
वाह रे ..डाक्टर ....
देहरादून से गोरखपुर बस से जाते समय
Tuesday, August 18, 2009
इतना भी मत डर यार
Wednesday, July 15, 2009
किसानो की हालत और कृषि
Monday, June 29, 2009
राहुल का कांग्रेसवाद
कांग्रेस की सीटे यूपी में बढ़ी और राहुल की जय जयकार होने लगी अब सरकार में भी राहुल का बोलबाला है किंतु माया से कोई भी खुल के लड़ने को तैयार नही है। गरीबो के नाम पर इतना पैसा केन्द्र सरकार दे रही है और दलितों की बेटी कहलाने वाली माया के ही राज में दलितों की बदतर हालत है। पिछले दिनों लखनऊ गए थे मुझे लगा जयपुर में हु। माया को ख़ुद को इतिहास में नाम दर्ज करना ही है तो जिस राजनीतिक मिशन को लेकर वह चली थी उसी के बल बूते ही उन्हें याद किया जाता किंतु अब धीरे धीरे दलितों की ही दुश्मन बनती जा रही है ।गाव के कुछ दलितों से मैंने बात किया वे बताते है माया से अच्छी तो सोनिया है जो गाव में ही काम दिला रही है। हालाकि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना में खामिया भी है और मजदूरो ने भी बताया की जॉब कार्ड के लिए उन्होंने ५०० रूपये दिए किंतु अब उन्हें कम मिल रहा है और उन्हें बाहर नही जाना पड़ता है । यही कारण है की इसबार यूपी में कांग्रेस की सीटे बढ़ी है । अब भी माया को समझ नही आ रहा है ......
Saturday, May 16, 2009
नही चला हिंदुत्वाद ,अब भी वक्त है सम्हाल जाओ...
Wednesday, May 6, 2009
मुलजिम जीवनराम के बहाने...
Friday, April 24, 2009
कौन सूध लेता है आजकल गांववालों की ???
Tuesday, April 21, 2009
पप्पू वोट क्यो नही देता ?
Sunday, April 19, 2009
बाबाओ को लगा नेता बनने का शौक
आजकल बाबाओ को एक नया शौक लगा है। वे हर मुद्दे पर नेताओ की तरह बयानबाजी करने लगे है। जबसे भारत में धार्मिक चैनलों की बाढ आई है बाबाओ की दुकान चल पड़ी है। बाबा लोगो को टीवी पर प्रवचन करते-करते काफी पहचान मिलने लगी है। अब बाबा धर्म के साथ -साथ राजनीति में भी हाथ आजमाने लगे है। इसकी शुरुआत बाबा रामदेव ने की। उन्होंने पहले आयुर्वेद की दवा के कारखाने खोले फ़िर नेताओ और फिल्मी नायक -नायिकाओ को योग सिखाते -सिखाते वे ख़ुद राजनीतिक मामलों में दखल देने लगे। बाबा आजकल हर मुद्दे पर बोलते हुए नजर आते है। उनकी देखा- देखी अब मोरारजी बापू ,आशाराम बापू भी नेताओ को शिक्षा देने लगे है। स्वामी अग्निवेश भी टीवी पर दिखते रहते है । मोरारजी ने तो यहाँ तक कह डाला की कांग्रेस और भाजपा को आपसी मतभेद भुला के एक हो जन चाहिए इससे तीसरे मोर्चे का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। अब बाबा को कौन समझाए की यह असंभव है बेशक आजकल नेता अपने -अपने सिद्धांतो को छोड़कर टिकट-सिद्धांत पर चल रहे है, जो भी टिकट दिया हम उसी के हो लिए के सिद्धांत पर चलते नेता इन बाबाओ से कुछ सीख ले। बाबा रामदेव ने तो अपना एक दल भी बना लिया - राष्ट्रीय स्वाभिमान दल । बाबा रामदेव कहते है उनका दल भ्रष्ट नेताओ के खिलाफ मतदाताओ में चेतानत लायेगा । बाबा कही ऐसा तो नही की आप भी पम बनने का सपना देखने लगे है। इसी लिस्ट में एक और बाबा है आदित्य नाथ ये ख़ुद को हिंदू हितों का रक्षक बताते है , गोरखपुर से संसद भी है, कहते है - "जब -जब धर्म पर आंच आई है संतो ने धर्म की रक्षा के लिए कदम उठाये है । " राजनीति के चाणक्य बनाना चाहते ये बाबा यह भूल जाते है की महात्माओ को उनके त्याग के लिए जाना जाता है। एसी गाडियों में चलते ये बाबा जनता को बेवकूफ बनते है और देश सेवा की ये बात करते है । धर्म के नाम पर गुंडागर्दी करवाने वाले इन बाबाओ को जनता ही सबक सिखायेगी । आमलोगों की बात करने वाले बाबा रामदेव के एक-एक शिविर में कम से कम ५०० रूपये की टिकट होती है। जिसे कोई आम इंसान नही खरीद सकता । अपना धंधा चलाने वाले ये बाबा आमलोगों को तो सिर्फ़ टीवी पर ही दिखायी देते है वो भी टीवी वालो से मोटी रकम लेने के बाद। नेता बनने की चाह रखने वाले इन बाबाओ में से कई पर तो हत्या तक के मुकदमे चल रहे है। नेता और बाबाओ में कोई फर्क नही रह गया है ।
Saturday, April 18, 2009
नक्सलवाद आतंकवाद से बड़ी समस्या
Saturday, April 11, 2009
जरनैल तुने ये क्या किया ?
बुश, जिन्ताओ और अब पी.चिदंबरम जूते के शिकार बने। इसके साथ ही मीडिया जगत में एक बहस छिड गई है । पत्रकारिता के ऊपर ही सवाल उठने लगे। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जिसे उसकी निष्पक्षता के कारण ही जाना जाता है। पत्रकार को एक सम्मान की नजर से देखा जाता है। उसे कही भी आने जाने की स्वतंत्रता होती है। जब पत्रकार अपने कार्यक्षेत्र में होता है तो वह सिर्फ़ एक पत्रकार होता है और पत्रकार की ना कोई जाति होती है , न कोई धर्म और ना ही कोई क्षेत्रीयता होती है । कुछ लोग अपनी जातीय भावनाओ को नही छोड़ पाते जिनके कारण पूरी मीडिया जगत पर सवाल उठाना सही नही है। जरनैल को यदि सरकार या मंत्रायल से कोई शिकायत थी तो उसे अपनी कलम की ताकत का प्रयोग करना चाहिए था, लेखन के द्वारा विरोध करना चाहिए था । पत्रकार का कम जूता, चप्पल या कोई हथियार चलाना नही है। उसके पास एक सबसे बड़ा हथियार है -कलम । क्या जरनैल के कलम की ताकत इतनी कमजोर हो गई थी की उसे जूते का सहारा लेना पड़ा ?लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माने जाने वाली पत्रकारिता को कलंकित करने वाले लोग लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी नही हो सकते। गृहमंत्री का पद देश के लिए सम्मान का सूचक पद है । उस पद की गरिमा को खंडित करना उचित नही है । चिदंबरम ने भले ही महानता दिखाते हुए पत्रकार को माफ़ कर दिया , पर क्या यह उचित है ?ऐसी मनोवृत्तीयो पर रोक न लगाना इस प्रवृत्ती को बढावा देना है जिसका नया उदाहरण नवीन जिंदल जूता प्रकरण है । अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए लोग ऐसी हरकते करते हैं इस प्रवृति पर रोक लगाया जाना चाहिए ताकि कोई और ऐसी हरकते ना करे । सिख सम्प्रदाय को जगदीश टाईटलर को क्लीनचिट दिए जाने से शिकायत है तो वो रोज धरना-प्रदर्शन कर रहे है । यदि इस पत्रकार को हीरो बनाना था तो उन्ही लोगो के साथ जाकर प्रदर्शन में शामिल होता। पत्रकारिता को तो ना कलंकित करता ।
इन सब के बीच १९८४५ में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगे की याद पुनः ताजा हो गई है। यहाँ तक की गृहमंत्री ने भी मान लिया है की सिखो का गुस्सा जायज है । अब देखना यह होगा कि कोर्ट टाईटलर के मुद्दे पर क्या फ़ैसला करती है? पंजाब में लोगो ने अपना गुस्सा ट्रेन की पटरियों निकला जो एक बेहद शर्मनाक बात है । राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुचना समस्या का समाधान नही है । जरनैल सिंह ने जो किया उसे इतना तूल देने की जरुरत नही है जितना मीडिया दे रही है ।
इन सबके बीच कांग्रेस ने एक कम अच्छा किया की टाईटलर और इस मुद्दे से जुड़े सज्जन कुमार की टिकट कट दी । जिससे कुछ शान्ति जरुर हुई । अब देखना यह होगा की क्या कांग्रेस को इसका लाभ मिल पाता है ?