पिछले कई दिनों से इमानदारो की तरह जीने को मन करता है। सभी लोग ईमानदारी की जिन्दगी जीने की सलाह देते है मगर कोई इमानदार नही रह पाता। सच की बुनियाद पर जिन्दगी खड़ा करने के लिए मैंने अपने घर में सच का एक खेल खेला जिसकी सजा मुझे यु मिली की हम अपने ही घर वालो से दूर हो गये । अब जो बच्चे है ओ भी हमें सिखाने की कोशिश करते जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया हो । लेकिन मैंने सिर्फ अपनी जिन्दगी ईमानदारी से जीने के लिए एक सच बोला था। अगर मैंने झूठ बोला होता तो आज सब खुश होते। तो क्या गुनाह कर दिया मैंने क्या अपने जाति से बाहर और खुद की मर्जी से शादी करना इतना बड़ा गुनाह है की जो हमें इतने अरमानो से पाले , पढाया -लिखाया आज ओ ही मुझे पराया बना दिए है । माँ तो मान भी जाती है पर क्या पिता इतने कठोर हो सकते है जो अपने बेटे से ४महिनो तक बात ही नही करते। सोचा था इन जज्बातों को अपने सीने में ही दफना दूंगा लेकिन आज मान बड़ा बोझिल है । कई दिनों से ये बाते मुझे सालती रहती है । मुझे पता है किसी को मेरी ये बाते बहुत बुरी लगेगी क्योकि ओ नहीं चाहती की हमारे घर की बाते लोगो तक पहुचे लेकिन मै चाहता हु की ओ मेरी बातें ,मेरे मन के भीतर चल रहे द्वन्द को भी समझे हलाकि मुझे पता ही की ओ सब जानती है। फिर भी मै ये साबित कर दूंगा मै सही हु । कोई भी माँ बाप अपने बेटे या बेटी की ख़ुशी में ही खुश होता है । लेकिन दुसरे लोग जो खुद के बेटे बेटी की चिंता न कर दुसरो की दुनिया में दखल देने की नाकाम कोशिश करते रहते है। मेरा ये कहानी सुनाने का मकसद सहनुभूति लेना नही है ,और ना ही मुझे सहानुभूति की जरुरत है । मै बस लोगो को ये बताना चाहता हु की आखिर कब तक आप दुसरो के लिए अपने बच्चो से नाराज रहेगे ? मेरा मकसद है उन माँ बाप को ये बताना की आप दुसरो की ख़ुशी के लिए अपने बच्चो की ख़ुशी छीन लेते है । आपके बच्चे आपसे दूर रहकर खुश नही रहते और ना आप ही खुश रह पाते है लेकिन आप क्यों दुनिया की खातिर आपनो से दूर है ?...............