Monday, April 25, 2011

आदर्श को बनाए रखना बेवकूफी है या समझदारी ???

मेरा एक दोस्त है जो काफी दिनो बाद कल मुझे मिला।मुझे ये जानकर काफी खुशी हुई कि वो अब भी अपने सिद्धांतो पर कायम है,लेकिन बात यहां से शुरु होती है..इतिहास विषय में गोल्ड मेडलिस्ट होने के बाद भी वो अभी तक बेरोजगार है...उसके सिद्धांत उसे हर वो काम करने से रोकते है जो उसे लगता है कि उसे भ्रष्टाचारियों में शामिल कर देगा। चार साल आईएएस की तैयारी के बाद उसे सफलता नही मिली लेकिन आईएएस बनाने का दावा करने वाली कोचिंग संस्थाओ से उसे जो कडवा अनुभव मिला वो उसमें शामिल नही होना चाहता इसलिए उसने एक कोचिंग में पढाने के ऑफर ठुकरा दिया जो कि उसे मात्र 3 घंटे के 15 हजार रुपए दे रहा था। वो दिल्ली जैसे शहरो में ट्यूशन नहीं पढाना चाहता क्योकि उसे लगता है कि कुछ लोग तो पैसे देके अपने बच्चों को पढा लेते है लेकिन उन बच्चो का क्या जो की इतना पैसा नहीं दे सकते...और इसलिए आजकल वो अपने गांव में रहता है और बच्चो को पढाता है। ये कोई कहानी नही एक हकीकत है जो कि एक एसे युवा को गांव में रहने को मजबूर कर रहा जो कि गोल्ड मेडलिस्ट है। इस लडके के सिद्धांत इसे एक एसी जिंदगी दे रहे है जिसके लिए वो डिजर्व ही नही करता। उसकी जिंदगी में आगे क्या होगा,ये तो मुझे नहीं पता लेकिन उसे देख के एसा लगता है कि इस भ्रष्ट भारत में इमानदार बने रहना कितना मुश्किल है.....

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